जीवन में वेदों की उपयोगिता :
Importance of Vedas in our normal life.
वैदिक , सनातन , धर्मशास्त्र सम्मत स्वधर्मानुष्ठान ही सर्वेश्वर सर्वशक्तिमान भगवान की महती सपर्या अर्थात उनकी पूजा हैं।
जो मानव को कल्याण प्रदान करती हैं।
गीता में भगवान ने स्वयं कहा हैं-
" स्वकर्मना तमभ्याचर्य सिद्धिम् विन्दति मानवः । "
इसलिए वेदादि समस्त शास्त्रों में नित्य और नैमित्तिक कर्मो को मानव के लिए परमधर्म और परम कर्तव्य कहा हैं।
जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से जीवन पर्यंत प्रतिदिन यथाधिकार स्नान , संध्या , गायत्री-जप , देवपूजन , अध्ययन-अध्यापन , चिंतन आदि नित्यकर्म करता हैं , उसकी बुद्धि आत्मनिष्ठ हो जाती हैं ।
कुछ नित्यकर्म तो ऐसे होते हैं , जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को रागपूर्वक नियमित-रूपसे करना ही पड़ता हैं ।
जैसे-शौचादि कृत्य , स्नान , भोजन , अध्ययन , शयन आदि ।
पर ये सारे कर्म शास्त्रों और वेदानुसार ही होने चाहिए और इनके अनुसार होना अति आवश्यक हैं ।
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